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Exclusive Interview : काम नहीं करना चाहते झारखंड के ब्यूरोक्रेट्स, सांसद निशिकांत दूबे बोले

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झारखंड के विकास पर यहां के सांसद क्या सोचते हैं? इस पर प्रभात खबर राज्य के सांसदाें से बातचीत की शृंखला शुरू कर रहा है. इसकी पहली कड़ी में आज पढ़ें गाेड्डा से भारतीय जनता पार्टी के सांसद डॉ निशिकांत दुबे की राय. उनसे बातचीत की विजय कुमार ने. झारखंड गठन के 18 वर्ष पूरे […]

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झारखंड के विकास पर यहां के सांसद क्या सोचते हैं? इस पर प्रभात खबर राज्य के सांसदाें से बातचीत की शृंखला शुरू कर रहा है. इसकी पहली कड़ी में आज पढ़ें गाेड्डा से भारतीय जनता पार्टी के सांसद डॉ निशिकांत दुबे की राय. उनसे बातचीत की विजय कुमार ने.

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झारखंड गठन के 18 वर्ष पूरे हो गये. राज्य के विकास में सबसे बड़ी बाधा किसे मानते हैं?

बतौर सांसद 10 वर्षों का अनुभव है. माननीय नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सिस्टम में भ्रष्टाचार कम हुआ. झारखंड के विकास में सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार है. पिछले सवा चार साल में देश भर में भ्रष्टाचार कम हुआ है. स्वाभाविक है, इसका असर झारखंड पर भी पड़ा है. मंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री के लेबल पर भ्रष्टाचार खत्म हुआ है, लेकिन झारखंड के ब्यूरोक्रेट्स काम नहीं करना चाहते हैं. सचिवालय में बैठे कुछ अधिकारी काम करना नहीं चाहते हैं. मुख्यमंत्री को भी जातिगत समीकरण फिट करना होता है. इस वजह से वे सचिव को सचिव के तौर पर नहीं देखते हैं. उनको लगता है आदिवासी को एडजस्ट करना है, शेड्यूल कास्ट को एडजस्ट करना है, फॉरवर्ड को भी एडजस्ट करना है. इससे क्षमतावान लोेग आगे नहीं आ पाते है. यही कारण है कि 18 वर्षों में झारखंड का जो चेहरे होना चाहिए, वह पहले 15 वर्षों में ट्रैक पर नहीं आया. यहां सड़कें बनती हैं, पर टूट जाती हैं. सड़कें इसलिए टूट जाती है कि हमारे जैसे जो जनप्रतिनिधि उनमें कहीं न कहीं स्वार्थ देखते हैं. ठेकेदारों के ऊपर दबाव डालते है. अधिकारियों के ऊपर दबाव डालते हैं कि पैसा मिल जाये. यदि कोई अधिकारी या ठेकेदार जनप्रतिनिधि को पैसा देगा, तो निश्चित रूप से काम का क्वालिटी प्रभावित होगा. कई बिल्डिंग बन कर अनुपयोगी है. अभी जो स्कूल बंद करने की नौबत आ रही है. इसका कारण कागज पर बिल्डिंग ही है. हमने बिल्डिंग बना दिया, लेकिन स्कूल की आवश्यकता नहीं थी. आंगनबाड़ी केंद्रों का हाल भी यही है. निचले स्तर भ्रष्टाचार अधिक है. उसे कंट्रोल नहीं कर पाते हैं. झारखंड को यदि विकसित होना है, तो इन चीजों से ऊपर उठना होगा. यही सबसे बड़ी बाधाएं हैं.

सीएनटी और एसपीटी एक्ट को कैसे देखते हैं ?

ऐसे एक्ट के नाम पर लोगों को बरगलाया जा रहा है. सीएनटी एक्ट में बाधाएं कम हैं. एक थाना क्षेत्र में आप जमीन की खरीद-बिक्री कर सकते हैं. आदिवासी, आदिवासी को जमीन दे सकता है. इस कारण से झारखंड मुक्ति मोर्चा के सर्वोच्च नेता खुद ही सीएनटी एक्ट का उल्लंघन करते पाये गये. जांच चल रही है. वहीं एसपीटी एक्ट धारा 370 से भी ज्यादा घटिया व खतरनाक धारा है. रसेल कमेटी वर्ष 1934 में बनी थी. रसेल कमेटी ने जो अपनी रिपोर्ट दी. उसको वर्ष 1949 में लागू किया गया. रसेल साहेब ने कहा था कि आदिवासी समाज में पढ़ाई लिखाई कम है. इस वजह से इनकी जमीन पर खतरा है. लेकिन जो गैर आदिवासी है ‘जिनको उन्होंने दीकू नाम दिया था’ वर्ष 1936 को जमा किये गये रिपोर्ट में इसका उल्लेख है. मेरा कहना है कि रसेल साहेब ने जो कुछ भी कहा आप उसे लागू करिये. मैं किसी के पक्ष व विपक्ष की बात नहीं कर रहा हूं. मैं तो एसपीटी एक्ट को मजबूत करने की बात कर रहा हूं.

यहां उद्योग-धंधे लगने में सबसे बड़ी बाधा क्या है?

कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2013 में जमीन अधिग्रहण संबंधी जो एक्ट बनाया, वह बहुत घटिया था. आरआर पॉलिसी में सोशल इंपैक्ट असेस्मेंट होगा. चारों सीजन को देखना होेगा कि गर्मी में क्या इंपैक्ट होगा. सर्दी में क्या इंपैक्ट हाेगा. उसमें चार गुणा कंपसेशन मिलेगा. राज्य सरकार व केंद्र सरकार में भी उतनी हैसियत नहीं है कि कोई प्रोजेक्ट को विस्तार कर पाये. दूसरे बिजनेसमैन की आने की बात तो छोड़िये. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ग्रेटर नोयडा में बन रहा जेवरवाला एयरपोर्ट व अमरावती, जो आंध्र प्रदेश में राजधानी बन रहा है. यह दो लैंड एक्यूजिशन एक्ट बनने के बाद सबसे बड़ा उदाहरण है. गोड्डा में अडाणी के पावर प्लांट में सरकारी रेट छह लाख रुपये है. उसका चार गुणा 24 लाख रुपये हुआ. उतने से भी संतुष्टि नहीं हुई, तो दोगुणा कीमत दी जा रही है. प्रति एकड़ 50 लाख रुपये मिल रहा है. यही हाल देवघर के एयरपोर्ट का है.

50 लाख रुपये में हरियाणा, दिल्ली, मुंबई व बेंगलुरु के बगल में जमीन मिलती है. जहां सभी प्रकार की सुविधाएं हैं. इन्हें आपको यहां लाना है, तो आपके पास सस्ते मजदूर व सस्ती जमीन होनी चाहिए. यही आपके पास दो अलटरनेटिव है, क्योंकि संताल परगना में पानी भी नहीं है. अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट देवघर का वर्ष 2012 में स्वीकृत हुआ, लेकिन अब भी लंबित है. देवघर में आइओसीएल का डीपो बनाया है. उसी तरह बीपीसीएल का डीपो बनना था. बीपीसीएल के लोग जसीडीह के आसपास जमीन लेना चाहते थे, लेकिन जमीन नहीं दे पाये. इसलिए एसपीटी एक्ट में गैर आदिवासियों को जमीन खरीद-बिक्री का अधिकार देना चाहिए. गैर आदिवासी अपना जमीन देते है, तोे यहां उद्योग धंधा बढ़ेगा. स्कूल–कॉलेज आयेंगे, तभी विकास संभव है.

वर्ष 2019 में चुनाव का मुद्दा क्या होगा ?

कोई मुद्दा नहीं है. मोदी जी के व्यक्तित्व के सामने किसी भी राजनीतिक दलों के पास कोई टक्कर का नेता नहीं है. मोदी जी केे व्यक्ति के सामने आज के डेट में कोई भी चेहरा नहीं है. यह सभी राजनीतिक दल को पता है. अब सभी राजनीतिक दल जातिगत समुच्चय बनाने का प्रयास कर रहे हैं. रीजनल जातियों को हारने के लिए इकट्ठा हो. पहले हरा दे, फिर उसके बाद तय करेंगे कि कौन प्रधानमंत्री होंगे. इस बार पिछले बार की तुलना में बेहतर परिणाम आयेगा. 350 से ज्यादा सीटें जीतेंगे.

झारखंड में हो रहे मॉब लीचिंग की घटना को रोकने लिए आपके पास क्या उपाय है?

इतिहास को समझने की जरुरत है. मॉब लीचिंग की कोई भी घटना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. कोई भी सभ्य समाज इसकी इजाजद नहीं देता है. लेकिन, देश भर में हो रहा है. मॉब क्यों चोरों के पीछे है. जिनका सामान चोरी होता है. आप उन्हीं के ऊपर एफआइआर कर देते हैं. जो गरीब लोग हैं उनके लिए गाय व भैंस ही आजीविका का साधन है. आप किसी के पेट पर लात मारियेगा, तो समाज उद्वेलित होगा. इस समाज में गाय, हिंदी, हिंदू का आंदोलन होता रहा है. गाय के आंदोलन में साधु संतों ने दस दिनों तक पार्लियामेंट को घेरे रखा था. यह पीएम मोदी व भारतीय जनता पार्टी को बदनाम करने की कोशिश है. असम का एनआरसी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से चल रहा है. एक ओर कोर्ट की बात करते हैं तो दूसरी ओर एनआरसी का विरोध कर रहे हैं. अब एससी-एसटी एक्ट पर आ गये हैं. कांग्रेस ने एससी व एसटी के लिए कमिशन बना दिया. लेकिन, ओबीसी के लिए क्यों नहीं कमिशन बनाया.

पत्थलगढ़ी को कैसे देखते हैं?

ओड़िशा में सबसे ज्यादा 32 फीसदी आबादी आदिवासी की है. वहां क्यों नहीं पत्थलगढ़ी हो रही है. बीजेपी रूलिंग स्टेट में ही क्यों पत्थलगढ़ी हो रही है. पत्थलगढ़ी इससे पहले क्यों नहीं हो रही थी. जिस प्रकार से मिशनरीज ऑफ चैरिटी, एनजीओ आदि के नेता पकड़े गये. चेहरा बेनकाम होने केे बाद पत्थलगढ़ी बंद हाे गयी.दरअसल आदिवासी समाज में धर्मांतरण बड़ा मुद्दा है. गोड्डा में आदिवासियों को गलत तरीके से फंसाया गया.

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