17.3 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 09:42 pm
17.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

उथल-पुथल भरे भारत में रोशनी और ताप की तरह है दिनकर के साहित्य का घनत्व

Advertisement

रामाज्ञा शशिधर सहायक प्रोफेसर हिंदी विभाग बनारस हिंदू विवि बुद्ध एक संदेश में कहते हैं कि चारों ओर बहुत अंधकार है. मेरे पास कुछ अंगार हैं. मैं उन्हें अंधकार पर फेंक रहा हूं. दिनकर के साहित्य को इस रूप में भी देखा जाना चाहिए. कविता और वैचारिक गद्य में लगभग बराबर की लेखनी चलाने वाले […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

रामाज्ञा शशिधर
सहायक प्रोफेसर
हिंदी विभाग
बनारस हिंदू विवि बुद्ध
एक संदेश में कहते हैं कि चारों ओर बहुत अंधकार है. मेरे पास कुछ अंगार हैं. मैं उन्हें अंधकार पर फेंक रहा हूं. दिनकर के साहित्य को इस रूप में भी देखा जाना चाहिए. कविता और वैचारिक गद्य में लगभग बराबर की लेखनी चलाने वाले दिनकर का साहित्य उथल-पुथल भरे भारत में रोशनी और ताप की तरह है. आजकल अनेक भारतीय प्रतीकों की तरह दिनकर की छीना-झपटी शुरू है. कुछ सत्ता संगठनों के लिए इसके राजनीतिक और भावनात्मक कारण ज्यादा हैं, सांस्कृतिक और वैचारिक कम. एक कारण दिनकर का बहुआयामी वैचारिक स्तर और यात्राएं भी हैं.
आखिर दिनकर के पास भविष्य के भारत का नक्शा कैसा था? आज यह एक जलता हुआ सवाल है. दिनकर अपने समस्त काव्य चिंतन और गद्य दर्शन में एक नये भारत की खोज में उलझे हुए दिखाई देते हैं. ‘भारत एक राष्ट्र है’ की अवधारणा 19वीं सदी के सांस्कृतिक चिंतन की देन है. बंगाल, महाराष्ट्र और हिंदी प्रदेशों ने उलझे हुए ढंग से ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी कि भारत इंग्लैंड से भिन्न किस्म का सामासिक देश है.
दिनकर पर रवींद्र, इकबाल और गांधी के राष्ट्रवादी चिंतन का गहरा प्रभाव है, लेकिन उसकी भावी दिशा नेहरू के इतिहासबोध से जुड़ी है.
दिनकर का भारत भारतीय नवजागरण के संकट से काफी कुछ मुक्त इसलिए है कि उनके आइडिया ऑफ इंडिया पर भारतीय विविधता और आधुनिकता का सकारात्मक प्रभाव है. दिनकर का भारत बोध जन-गण और प्रभु वर्ग के तनाव से पैदा होता है. किसान और गांव की लूट पर फिरंगी शासन का पूरा ताना-बाना खड़ा था. इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति तक भारतीय खेती की लूट और पारंपरिक उद्योग की बर्बादी पर टिकी थी. दिनकर की बीस साल की उम्र में रचित किसान विद्रोह केंद्रित पहली काव्य पुस्तिका ‘विजय संदेश’ उपनिवेश और उसके देसी आधार ज़मींदार विरोध का उदाहरण है.
दिनकर के राष्ट्र चिंतन में यह तनाव आजाद भारत की रचनाशीलता में भी लगातार बना रहता है. राष्ट्र किसका होना चाहिए और कैसा होना चाहिए, यह तनाव उन्हें गांधी से मार्क्स तक की यात्रा कराता है. उनके लिए हाशिये की आर्थिक मुक्ति ही प्रथम राष्ट्रधर्म है.
दिनकर की शुरुआती कविताओं में मिथिला और ग्रामीण लोक संस्कृति की अनोखी व्यंजना है. बाद में राष्ट्रीयता स्थानीयता पर हावी होती चली गयी. दिल्ली पर लिखी कविताओं में गांव फिर लौटता है.
वस्तुतः राष्ट्रवाद स्थानिक राष्ट्रीयता का उत्पीड़क है, लेकिन तत्कालीन परिवेश की शायद वह जरूरी मांग थी. किसान जीवन पर यदि दिनकर खंडकाव्य लिखते, तो आज वह करोड़ों किसानों की मुक्ति का लाइट हाउस बन सकता था. फिर भी, ‘जनतंत्र का जन्म’ जैसी कविताएं जन भारत की खोज है. दिनकर के सामने ही संकीर्णता के विचारों ने अनेक स्तरों पर भारत को कब्जे में ले लिया था.
एक ओर ब्रिटिश बौद्धिकता भारत को संपेरों और मनुस्मृति-पुराणों के देश के रूप में गढ़ रही थी, तो दूसरी ओर पुनरुत्थानवादी विचारधारा इसकी पुष्टि दूसरे स्तरों पर कर रही है. राष्ट्र के एकल आख्यान और प्राधिकार को दिनकर ने कविता और गद्य में जितनी बड़ी चुनौती दी है, हिंदी का कोई दूसरा उपनिवेशकालीन लेखक नहीं दे पाया.
अतीत और वर्तमान के रिश्तों पर दिनकर की ये पक्तियां गौरतलब हैं- ‘जब भी अतीत में जाता हूं/ मुर्दों को नहीं जिलाता हूं/ पीछे हटकर फेंकता वाण/ जिससे कंपित हो वर्तमान’. आजकल शव साधना की बहार है.
दिनकर दो संस्कृत महाकाव्यों में अधिक विविध, लोकतांत्रिक, रचनात्मक और राजनीतिक महाकाव्य महाभारत की कथा चुनते हैं और सिर्फ रूपक के माध्यम से वर्तमान भारत की समस्या का हल पेश करते हैं. ‘कुरुक्षेत्र’ भारतीय युद्ध की हिंसा की परंपरा और आधुनिकता से उपजे युद्ध की हिंसा दोनों को एक साथ कटघरे में खड़ा कर देती है. ‘रश्मिरथी’ सत्ता में बहिष्कृत को जगह दिलाने का आख्यान है.
अतीत और वर्तमान के रिश्तों पर ‘संस्कृति के चार अध्याय’ को नये सिरे से देखा जाना चाहिए. यह भारतीयता की अवधारणा पर दिनकर के चिंतन का निचोड़ है. कट्टर हिंदुत्वपंथियों के लिए यह बेहद असुविधाजनक किताब है. दिनकर भारत की खोज करते हुए औपनिवेशिक ज्ञानकांड की राजनीति का गहरा खंडन करते हैं. उनके भारत की निर्मिति में सिर्फ वेद और उपनिषद ही नहीं, बल्कि बौद्ध, जैन, पारसी, इस्लाम का बराबर का योगदान है. वह इस दर्शन को पलट देते हैं कि मुसलमान आक्रांता के तौर पर आये.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें