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भारत-ताइवान रिश्ते की नयी दिशा

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डॉ सुमित झा रिसर्च फेलो, चेन्नई सेंटर फॉर चाइना स्टडीज sumitjha83@gmail.com पिछले कुछ वर्षों में भारत-ताइवान संबंध में अामूल-चूल परिवर्तन आया है. जहां दोनों पक्षों ने आपसी हितों के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों- जैसे आर्थिक, व्यापार, शिक्षा और पर्यटन में आपसी सहयोग को मजबूत किया है. वहीं मोदी सरकार की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और ताइवान सरकार […]

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डॉ सुमित झा

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रिसर्च फेलो, चेन्नई सेंटर फॉर चाइना स्टडीज

sumitjha83@gmail.com

पिछले कुछ वर्षों में भारत-ताइवान संबंध में अामूल-चूल परिवर्तन आया है. जहां दोनों पक्षों ने आपसी हितों के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों- जैसे आर्थिक, व्यापार, शिक्षा और पर्यटन में आपसी सहयोग को मजबूत किया है.

वहीं मोदी सरकार की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और ताइवान सरकार की ‘न्यू साउथ बाउंड पाॅलिसी’ को भारत एवं ताइवान के आपसी रिश्ते को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा जा रहा है.

भारत और ताइवान का संबंध बहुत पुराना है, लेकिन 1950 में भारत ने ताइवान के साथ कूटनीतिक संबंध को खत्म कर चीन के साथ रिश्ता जोड़ लिया. शीत युद्ध के दौरान नयी दिल्ली और तायपेई के बीच अनौपचारिक रिश्ते की संभावनाएं भी धूमिल हो गयीं, क्योंकि ताइवान अमेरिका-केंद्रित गुट का हिस्सा बन गया और भारत ने गुट निरपेक्ष नीति को अपनाया. हलांकि, 1995 में तायपेई में ‘भारत-तायपेई संगठन’ और नयी दिल्ली में ‘तायपेई इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर’ की स्थापना के साथ भारत और ताइवान के बीच अनौपचारिक संबंध की शुरुआत हुई.

साल 2002 में निवेश को बढ़ावा देने के लिए दोनों पक्षों के मध्य महत्वपूर्ण समझौता हुआ. साल 2004 से ताइवान सरकार ने भारतीय छात्रों के लिए ‘ताइवान स्काॅलरशिप’ और ‘नेशनल हायु इनरीचमेंट स्काॅलरशिप’ देना शुरू किया. साल 2006 में तायपेई में ताइवान-भारत सहयोग परिषद की स्थापना की गयी. साल 2007 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आपसी सहयोग को प्रगाढ़ करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया. दोनों पक्षों के मध्य 2011 से दोहरा कराधान से बचाव संबंधी समझौता भी हुआ.

पिछले चार वर्षों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने एक्ट ईस्ट नीति के अंतर्गत ताइवान के साथ रिश्तों को बेहतर करने पर जोर देना शुरू किया.

साल 2015 में ताइवान के आर्थिक मामलों के उपमंत्री को ‘वाइब्रेंट गुजरात’ समारोह में आमंत्रित किया गया था. साल 2016 में राष्ट्रपति के चुनाव में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की उम्मीदवार साई इंग-वेन की विजय से भारत-ताईवान के रिश्तों में और मजबूती आयी है. चीन के विरोध के बावजूद भारत सरकार ने ताइवान के तीन सदस्यीय महिला शिष्टमंडल की मेजबानी की. साई सरकार ने अपनी न्यू साउथ बाउंड पॉलिसी के अंतर्गत भारत के साथ संबंध को मजबूत करने पर विशेष बल दिया है.

निश्चित रूप से, आपसी संबंध को प्रगाढ़ करने के लिए भारत और ताइवान के पास कई कारण हैं. इसका एक महत्वपूर्ण पक्ष द्विपक्षीय आर्थिक और व्यापारिक हित हैं.

भारत-ताइवान व्यापार 2000 के 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2017 में 6.33 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. तकरीबन 90 ताइवानी कंपनियां भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न भागों में काम कर रही हैं. दिसंबर 2017 में नयी दिल्ली और तायपेई ने इंजीनियरिंग, प्रोडक्ट मैन्युफैक्चरिंग (उत्पाद-विनिर्माण) और शोध एवं विकास के क्षेत्र में आपसी संबंधों को नयी ऊंचाई पर ले जाने के उद्देश्य से समझौता किया है.

ताइवान स्थित दुनिया की सबसे बड़ी हार्डवेयर निर्माण कंपनी फोक्स्कोन ने पांच बिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश करने की घोषणा की है.

ताइवान के पास विदेशी मुद्रा का भरपूर भंडार और हार्डवेयर, मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, इंफ्रास्ट्रक्चर, ऑटोमोबाइल्स एवं अन्य क्षेत्रों में विशेषज्ञता की वजह से मोदी सरकार का मानना है कि भारत के मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडियन जैसी पहलों में ताइवान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. दूसरी ओर, वहां की सरकार भी चाहती है कि भारत के बाजार में ताइवान की भागीदारी बढ़े, ताकि चीन पर इसकी आर्थिक निर्भरता कम हो.

चूंकि मोदी सरकार ने राष्ट्रीय हित साधने के उद्देश्य से भारत की विदेश नीति के हिस्से के रूप में सॉफ्ट डिप्लोमेसी पर विशेष जोर दिया है और ताइवानी आबादी का एक बड़ा हिस्सा बौद्ध धर्म को माननेवाला है, इसलिए ये सारी स्थितियां पर्यटन के क्षेत्र में भी भारत और ताइवान को नजदीक लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.

सामरिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से दोनों देश को चीन से खतरा है. भारत का चीन के साथ सीमा विवाद है और हाल के दिनों में बीजिंग ने नयी दिल्ली के विरुद्ध आक्रामक रवैया भी अपनाया है, जिसका उदाहरण बीते दिनों हम डोकलाम में देख चुके हैं.

दूसरी ओर, ताइवान को अपने में मिलाने के लिए चीन अामादा है. दक्षिण चीन समुद्र में चीन के प्रभाव को कम करना भी नयी दिल्ली और तायपेई का उद्देश्य है. इसके माध्यम से जहां ताइवान की एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी स्थिति को बल मिलेगा, वहीं इस क्षेत्र में भारत अपनी पहुंच को और मजबूत कर सकता है.

ताइवान चूंकि चीन को अच्छी तरह समझता है. अतः इसके साथ सामरिक रिश्ता बढ़ाना भारत के हित में होगा. इस माध्यम से भारत अच्छे तरीके से चीन के सामरिक चिंतन को समझा सकता है और उसके आधार पर अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत कर सकता है.

अत: आर्थिक, सुरक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें ताइवान और भारत के साझा हितों को देखते हुए, इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि आनेवाले समय में मोदी सरकार और साई सरकार आपसी रिश्तों को नयी दिशा देंगे.

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