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उपवास व संयम से इंद्रियों की क्षमताओं को पुनर्स्थापित करना ही नवरात्र-साधना

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श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषविद् sripatitripathi@gmail.com उपवास व संयम से इंद्रियों की क्षमताओं को पुनर्स्थापित करना ही नवरात्र-साधनान वरात्र ही शुद्ध शब्द है, जिसका अर्थ है नौ रात्रियों का समूह. यह हिंदी में पुलिंग शब्द है. प्रायः लोग अनजाने में स्त्रीलिंग मानकर नवरात्रि तथा नवरात्र का अशुद्ध प्रयोग कर दिया करते हैं. नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ तो […]

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श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषविद्
sripatitripathi@gmail.com
उपवास व संयम से इंद्रियों की क्षमताओं को पुनर्स्थापित करना ही नवरात्र-साधनान वरात्र ही शुद्ध शब्द है, जिसका अर्थ है नौ रात्रियों का समूह. यह हिंदी में पुलिंग शब्द है. प्रायः लोग अनजाने में स्त्रीलिंग मानकर नवरात्रि तथा नवरात्र का अशुद्ध प्रयोग कर दिया करते हैं. नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ तो नौ रातें ही हैं, परंतु अगर हम इसके गूढ़ अर्थों पर जाएं, तो मानवी काया रूपी अयोध्या में नौ द्वार अर्थात प्रमुख इंद्रियां हैं.
अज्ञानवश इनके दुरुपयोग के कारण उनमें जो अंधकार छा जाता है, उसे इन नौ रातों में एक-एक रात में एक-एक इंद्रिय के ऊपर विचारना तथा उपवास और संयम के माध्यम से उनमें सन्निहित क्षमताओं को पुनर्स्थापित करना ही नवरात्र की उद्देश्यपूर्ण साधना है.
नवरात्र में आराधना के साथ उपासना का भी बड़ा महत्व है. यों तो हवा पीकर, जल व दूध पीकर या फल खाकर व्रत करने का विधान है. अशक्य होने पर रात को शुद्ध भोजन लिया जा सकता है. बाल, वृद्ध और रोगियों को यथाशक्ति ही व्रत पालन करना उचित है, हठयोग नहीं. हो सके तो प्रतिपदा से नवमी तक व्रत रखें, नहीं तो नवमी को पूजा-हवन आदि के बाद पारण कर सकते हैं. इतना न हो सके तो सप्तमी से नवमी तक ही त्रिरात्र व्रत करें. इतना भी न हो सके तो केवल प्रतिपदा और महाष्टमी का व्रत करें.
प्रत्येक दिन तीन-तीन पाठ करने होंगे. इसके बाद हवन आदि. जो संस्कृत के स्तोत्रों का पाठ नहीं कर सकते हैं, वे दुर्गा चालीसा का ही पाठ करें, पर कुछ न कुछ स्वयं भी करें. भाव में ही भगवान एवं भगवती हैं. शुद्ध भावों का अभाव न हो. भाव के अभाव में सारे खर्च भी विशेष महत्व नहीं रखते.
इस नवरात्रि लें स्व संकल्प
साधारणत: लोग व्रत का अर्थ उपवास समझते हैं, परंतु व्रत का सही अर्थ है संकल्प. नवरात्र में अधिकांश लोग आंशिक रूप से अन्न न खाने का संकल्प लेते हैं, तो बहुत से लोग पूरे नौ दिन बिल्कुल अन्न ग्रहण न करने का भी संकल्प लेते हैं, परंतु इस नवरात्र ही हम एक व्रत ऐसा लें, जिसे जीवनभर निभा सकें. जैसे हम व्रत लें कि आज से हम मांसाहार त्यागने का व्रत लेते हैं. शराब, बीड़ी, सिगरेट, मसाला, चाय या अन्य जो भी दुर्व्यसन हैं, उन्हें छोड़ने का संकल्प अवश्य करें.
जो लोग निर्व्यसनी हैं, वे संध्या करने का, यज्ञ करने का, राष्ट्र रक्षा, गौरक्षा, धर्मरक्षा, कोई भी व्रत अपनी सामर्थ्यानुसार ले सकते हैं. कम से कम हम आत्मनिर्माण का संकल्प तो ले ही सकते हैं और उसे निभा भी सकते हैं, तो पावन पर्व में हम सब कम-से-कम एक व्रत आत्म उत्थान के लिए अवश्य लें. आप अच्छे होंगे, तो जग होगा.
षष्ठी से दशमी तक मुहूर्तकाल
षष्ठी (15 अक्तूबर, सोमवार) : बिल्वाभिमंत्रण किया जायेगा. संध्या में बेल के पेड़ के नीचे पूजन कर दुर्गारूप बेल को लाने के लिए न्योता दिया जायेगा.
सप्तमी (16 अक्तूबर, मंगलवार) : सुबह 10:30 तक सप्तमी. ससम्मान डंठल सहित बेल पूजा स्थल पर लाएं और पूजा करें. पत्रिका-प्रवेश करें. मध्य रात्रि में अष्टमी का योग होने से निशापूजा भी आज ही होगी.
अष्टमी (17 अक्तूबर, बुधवार) : दिन में 12:27 तक. इसी दिन महाष्टमी व्रत, राजोपचार पूजन, बलिप्रदान.
नवमी (18 अक्तूबर, गुरुवार) : दिन में 02:31 तक. आज पाठ-समाप्ति, हवन, तर्पण, मार्जन, कन्यापूजन, ब्राह्मण-भोजन. आज ही नवरात्र से संबंधित अनुष्ठान की समाप्ति का हवन दिन में 2:31 तक. चूंकि दिन में ही नवमी समाप्त हो रही है, इसलिए नवरात्र व्रत का पारण भी दशमी तिथि में दिन में 2:31 के बाद आज ही होगा. विजयदशमी का प्रसिद्ध पर्व आज ही मनाना शास्त्र सम्मत. इसी दिन जयंती-धारण, अपराजिता-पूजन, शमीपूजन.
दशमी (19 अक्तूबर, शुक्रवार : प्रातः प्रतिमा विसर्जन.

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