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श्रीलंका में अस्थिरता के हालात, छाये सियासी संकट के बादल

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श्रीलंका में राजनीतिक घमासान जारी है. राष्ट्रपति सिरीसेना ने रानिल विक्रमासिंघे को हटाकर महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री घोषित कर दिया है. इस फैसले के बाद श्रीलंका में संवैधानिक अस्थिरता के साथ-साथ माहौल बिगड़ने के आसार नजर आ रहे हैं. श्रीलंकाई संसद के स्पीकर ने भी इस फैसले को अस्वीकृत किया हैं. दक्षिण एशियाई देशों के […]

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श्रीलंका में राजनीतिक घमासान जारी है. राष्ट्रपति सिरीसेना ने रानिल विक्रमासिंघे को हटाकर महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री घोषित कर दिया है. इस फैसले के बाद श्रीलंका में संवैधानिक अस्थिरता के साथ-साथ माहौल बिगड़ने के आसार नजर आ रहे हैं. श्रीलंकाई संसद के स्पीकर ने भी इस फैसले को अस्वीकृत किया हैं.
दक्षिण एशियाई देशों के बीच श्रीलंका महत्वपूर्ण स्थान रखता है. राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे चीन के करीबी माने जाते हैं, वहीं बतौर राष्ट्रपति उनके कार्यकाल के दौरान भारत से श्रीलंका के रिश्ते बहुत मधुर नहीं थे. इसलिए माना जा रहा है कि सत्ता में राजपक्षे की वापसी के कई निहितार्थ निकलते हैं. श्रीलंका में राजनीतिक संकट, सिरीसेना-राजपक्षे-विक्रमासिंघे की प्रासंगिकता, इस उठापटक में भारत और चीन की भूमिका के इर्द-गिर्द केंद्रित है आज का इन डेप्थ…
खूनी संघर्ष की स्थिति पैदा
श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता का दौर अपने जोर पर है. राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने रानिल विक्रमासिंघे को हटाकर पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को बीते शुक्रवार नये प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिला दी है.
इसके पहले सिरीसेना की पार्टी यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम अलायंस (यूपीएफए) ने सत्तारूढ़ गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया था. यह गठबंधन रानिल विक्रमासिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के साथ बना था. राष्ट्रपति सिरीसेना के इस कदम के बाद श्रीलंका में सियासी संकट गहरा गया है.
जानकारों के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाये जाने से देश में राजनीतिक अस्थिरता के साथ संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है. साल 2015 के संशोधन के बाद, श्रीलंका का संविधान राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने अधिकार नहीं देता. महिंदा राजपक्षे और सिरीसेना के साथ आने के बाद भी उनके पास 95 सीटें हैं और रानिल विक्रमासिंघे की पार्टी यूएनपी के पास 106 सीटें मौजूद हैं. श्रीलंका में बहुमत सिद्ध करने के लिए 113 सीटों की दरकार होती है. इस उठापटक के बीच देश में माहौल बिगड़ा नजर आ रहा है. हिंसा की घटनाएं भी सामने आ रही हैं.
बर्खास्त पेट्रोलियम मंत्री अर्जुन रणतुंगा को ऐसी ही एक घटना में गिरफ्तार कर लिया गया था, जो बाद में बेल पर रिहा किये गये. बीते मंगलवार को रानिल विक्रमासिंघे के पक्ष में एक लाख लोगों ने प्रदर्शन भी किया है. श्रीलंका की संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने राष्ट्रपति के फैसले को अस्वीकृत कर दिया है, वहीं विक्रमासिंघे का कहना है कि वे अभी भी देश के प्रधानमंत्री हैं.
घटनाक्रमों पर भारत और चीन की पैनी नजर
श्रीलंका राजनीतिक रूप से संवेदनशील वक्त से गुजर रहा है. ऐसे समय में भारत और चीन की नजर वहां के हालात पर बनी हुई है. महिंदा राजपक्षे ने समर्थन की तलाश में अपने सूत्रों को भारतीय प्रशासनिकों से मिलने के लिए भेजा है.
लेकिन, भारत फिलहाल अपने आप को किसी भी गतिविधि में शामिल करने से बच रहा है और श्रीलंका में राजनीतिक स्थिति की सूरत स्पष्ट होने का इंतजार कर रहा है. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि श्रीलंका की संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने रानिल विक्रमासिंघे की बर्खास्तगी को अस्वीकृत किया है.
हालांकि, भारत अपनी नजर श्रीलंका पर गड़ाये हुए है, क्योंकि चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनने की बधाई दे चुके हैं. श्रीलंका भारत, चीन और पाकिस्तान जैसे दक्षिण एशियाई देशों के लिए महत्वपूर्ण रहा है. इन देशों के बहुत सारे हित श्रीलंका से जुड़े हुए हैं, जिनमें से एक दक्षिण एशियाई देशों में स्थिति मजबूत करना है.
इसलिए, ऐसा माना जा रहा है कि भारत और चीन श्रीलंका में इस राजनीतिक संकट की स्थिति में अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करेंगे. हालांकि, जानकारों के अनुसार, ऐसा मानने के पीछे कोई वजह नहीं दिखती कि इस राजनीतिक बदलाव के पीछे भारत या चीन की कोई भूमिका रही है. महिंदा राजपक्षे के दूसरे कार्यकाल के दौरान भारत के साथ श्रीलंका के संबंधों में खटाश बनी रही थी. इसके अलावा, राजपक्षे के कार्यकाल के वक्त श्रीलंका चीन के बहुत करीब रहा. चीन ने साल 2009 में श्रीलंका के दशकों पुराने गृहयुद्ध के समाप्त होने के बाद देश में पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में सहभागिता की थी और ऐसा करने वाला पहला देश था.
ऐसा भी कहा जाता रहा है कि चीन ने 2014 के चुनावों में राजपक्षे को जिताने की कोशिश की थी और पैसे भी लगाये थे. इस संदर्भ में इसी साल के जून महीने में न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें दावा किया गया था कि चीन की चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड (सीएचईसी) ने महिंदा राजपक्षे के चुनावी अभियान में 70.6 लाख डॉलर खर्च किये थे. इसके अतिरिक्त, भारत ने साल 2014 में सिरीसेना की उम्मीदवारी का समर्थन किया था, जिसके बाद रानिल विक्रमासिंघे को भारत का समर्थक माना जाने लगा था.
इन सारी बातों के मद्देनजर ही कुछ विशेषज्ञों ने महिंदा राजपक्षे की हार को भारत की जीत बताया था. जब मैत्रीपाला सिरीसेना सत्ता राष्ट्रपति चुने गये थे, तो उन्होंने राजपक्षे की चीन और श्रीलंका की करीब लाने की नीतियों, देश की विभिन्न परियोजनाओं में चीन के घुसपैठ और भ्रष्टाचार, इन सब के बीच नियमित सरकारी नियमों के उल्लंघन की बात उठाई थी और इन्हें रोक दिया था. सिरीसेना ने नाटकीय तरीके से मामूली बदलाव करने के बाद एक साल के पश्चात ही सभी परियोजनाओं को फिर हरी झंडी दिखा दी थी.
तमाम बातों के बीच, एक पहलू यह भी है कि भारत ने कभी खुलकर असहमति रखने वाले राजपक्षे या अन्य किसी श्रीलंकाई राजनीतिज्ञ का विरोध नहीं किया है, इसलिए किसी भी स्थिति में भारत के पास अपने दांव चलने का मौका बना रहेगा. इसी वर्ष अगस्त में महिंदा राजपक्षे ने भारत का दौरा भी किया था और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी भेंट की थी.
इस बीच श्रीलंका के राजनीतिक संकट के बीच चीन ने बहुत संतुलित बयान दिया है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा है कि चीन श्रीलंका में चल रही राजनीतिक उठापटक पर नजर बनाये हुए है. चीन आशा कर रहा है कि श्रीलंका अपना राजनीतिक संकट बातचीत द्वारा दूर कर सकता है.
प्रधानमंत्री की बर्खास्तगी व नियुक्ति पर क्या कहता है श्रीलंका का संविधान?
रानिल विक्रमासिंघे को हटाकर राष्ट्रपति सिरीसेना ने महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री घोषित किया है. इसके बाद से ही श्रीलंका में अस्थिरता का माहौल है. पूरा देश दो धड़ों में बंटा दिखायी दे रहा है. कोई इसे देशहित में लिया फैसला बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ रानिल विक्रमासिंघे और संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या सहित तमाम लोग इसे असंवैधानिक व लोकतंत्र-विरोधी बता रहे हैं.
श्रीलंका के संविधान के 19वें संशोधन के अनुसार, देश के राष्ट्रपति किसी प्रधानमंत्री को तब तक नहीं हटा सकते, जब तक कि प्रधानमंत्री इस्तीफा न दे दें या सांसद के पद पर बने रहने का अधिकार न खो दें या फिर कैबिनेट के मंत्रियों को बर्खास्त न कर दिया जाये. साल 2015 में ही श्रीलंका के संविधान में 19वां संशोधन किया गया था. इसके अंतर्गत, राष्ट्रपति के अधिकार-क्षेत्र को सीमित कर दिया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने का अधिकार भी शामिल था. इस आर्टिकल 46(2) के अनुसार, राष्ट्रपति केवल मंत्री को हटा सकता है.
हालांकि, किसी मंत्री को भी बर्खास्त करने के लिए राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की सलाह लेने की जरूरत होती है. संविधान का यही आर्टिकल बहुमत प्राप्त प्रधानमंत्री को जीवनदान देता है कि उसे कोई बर्खास्त नहीं कर सकता. इस आर्टिकल के अनुसार रानिल विक्रमासिंघे की बर्खास्तगी असंवैधानिक नजर आती है. राष्ट्रपति के फैसले के पक्ष में संविधान के आर्टिकल 42 का हवाला दिया जा रहा है, जो कहता है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री पद सुरक्षित कर सकते हैं और किसी और को दे सकते हैं, यदि प्रधानमंत्री संसद में विश्वास-मत खो चुके हों.
श्रीलंका के संविधान के अनुच्छेद 42(4) के अनुसार, प्रधानमंत्री के पद के लिए राष्ट्रपति उसी संसद सदस्य का चुनाव कर सकता है, जिस पर राष्ट्रपति को सदन में बहुमत साबित कर पाने का भरोसा हो. हालांकि, राजपक्षे के साथ अभी तक ऐसा होता देखा नहीं गया है और 16 नवंबर तक संसद की कार्यवाही भी राष्ट्रपति सिरीसेना ने स्थगित कर दी है.
गौरतलब है कि रानिल विक्रमासिंघे के साथ मैत्रीपाला सिरीसेना ने ही मिलकर साल 2015 में ‘राष्ट्रीय एकता’ वाली सरकार बनायी थी और संविधान के साथ-साथ सरकारी नीतियों में संशोधन किये थे.
श्रीलंकाई संसद का स्वरूप
श्रीलंका की संसद सर्वोच्च विधायी निकाय है. यह एकसदनी व्यवस्था के तहत कार्य करती है. यहां के सदन में 225 सदस्य होते हैं, जो पांच वर्षों के लिए चुने जाते हैं. इन 225 सांसदों में 196 सांसद 22 चुनावी जिलों से चुने जाते हैं, जबकि 29 सांसद विभिन्न दलों व स्वतंत्र समूहों को आवंटित राष्ट्रीय सूची से चुने जाते हैं. जिस दल को सबसे ज्यादा सीटें प्राप्त होती हैं, वह चुने गये प्रत्याशियों में से एक को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है. संसद को यहां कानून बनाने के साथ ही संविधान में किसी प्रावधान को निरस्त या संशोधित करने या कोई प्रावधान जोड़ने का अधिकार भी प्राप्त है.
महिंदा राजपक्षे
महिंदा राजपक्षे का जन्म 18 नंवबर, 1945 को हंबनटोटा के वीराकेतिया में हुआ था. इनके पिता डी ए राजपक्षे, विजेयनंदा दहनायके की सरकार में कृषि मंत्री थे.
महिंदा राजपक्षे वकालत की पढ़ाई करके नवंबर 1977 में अटॉर्नी ऐट लॉ बने. वर्ष 1970 में बेलिएथा चुनाव क्षेत्र से वे श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) से सांसद चुने गये. साल 1989 में महिंदा हंबनटोटा से एक बार फिर चुनाव जीत संसद पहुंचे. वर्ष 1994 में वे श्रम मंत्री और 1997 में मत्स्य पालन और जलीय संसाधन मंत्री बनाये गये. मार्च 2002 में वे नेता प्रतिपक्ष चुने गये.
वर्ष 2004 में चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद महिंदा श्रीलंका के 13वें प्रधानमंत्री नियुक्त किये गये. नवंबर 2005 में वे श्रीलंका फ्रीडम पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति चुनाव में खड़े हुए. इस चुनाव में यूनाईटेड नेशनल पार्टी के उम्मीदवार रानिल विक्रमासिंघे थे. महिंदा ने इस चुनाव में 50.3 प्रतिशत मताें से जीत दर्ज की. वर्ष 2010 में महिंदा एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव में विजयी घोषित हुए.
जनवरी 2015 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में महिंदा अपने पूर्व सहयोगी मैत्रीपाला सिरीसेना से चुनाव हार गये. यूं तो महिंदा ने श्रीलंका के विकास के लिए कदम उठाये, लेकिन वर्ष 2009 में तमिल विद्रोहियों के साथ जारी गृहयुद्ध को समाप्त करने के कारण बहुसंख्यक सिंहलियों के बीच उनकी छवि एक राष्ट्रवादी नेता की बन गयी. हालांकि उन पर तमिल विद्रोहियों के खिलाफ युद्ध में मानवाधिकार के हनन के आरोप भी लगे. महिंदा सिंहली बौद्धों के बीच भले ही काफी लोकप्रिय हैं, लेकिन तमिल और मुसलमान उन्हें विशेष पसंद नहीं करते.
रानिल विक्रमासिंघे
रानिल विक्रमासिंघे का जन्म 24 मार्च, 1949 को कोलंबों में हुआ था. यूनाईटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) से जुड़ने के बाद ये 1977 में बियागामा चुनाव क्षेत्र से सांसद चुने गये. इसके बाद रानिल जे आर जयवर्धने की सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने. वर्ष 1989 में ये सदन के नेता चुने गये.
राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की तमिल विद्रोहियों द्वारा हत्या कर दिये जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डी बी विजेतुंगा के कार्यकारी राष्ट्रपति बनने के कारण मई 1993 में ये देश के प्रधानमंत्री नियुक्त किये गये. अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने देश की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव किये. वर्ष 1994 में हुए संसदीय चुनाव में इनकी पार्टी चुनाव हार गयी.
इसके बाद 1999 में रानिल यूएनपी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाये गये, लेकिन वे चंद्रिका कुमारतुंगा से हार गये. वर्ष 2001 के आम चुनाव में मिली विजय के बाद रानिल दिसंबर 2001 में देश के प्रधानमंत्री बने. दिसंबर 2004 में रानिल यूएनपी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाये गये, लेकिन यह चुनाव नवंबर 2005 में हुआ जिसमें रानिल महिंदा राजपक्षे से हार गये. जनवरी, 2015 में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने रानिल विक्रमासिंघे को देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया.
मैत्रीपाला सिरीसेना
पालवट्टे गमारालालागे मैत्रीपाला यापा सिरीसेना का जन्म 3 सितंबर, 1951 को गंफा जिले के यगोडा गांव में हुआ था. पढ़ाई के दौरान मैत्रीपाला कम्युनिज्म से प्रभावित थे.
लेिकन , थोड़े समय बाद ही ये श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) से जुड़ गये और मात्र 17 वर्ष की उम्र में एसएलएफपी पोलोन्नारुवा के यूथ ऑर्गनाइजेशन के सेक्रेटरी बनाये गये. 1989 में मैत्रीपाला एसएलएफपी से पहली बार सांसद बने. 1994 में ये पीपुल्स एलायंस (पीए) की तरफ से चुनाव लड़े और सांसद व मंत्री बने. 2001 में पीए की तरफ से एक बार फिर सांसद बने, हालांकि इनकी पार्टी चुनाव हार गयी.
नवंबर 2005 में राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने मैत्रीपाला को कृषि मंत्री नियुक्त किया. 2010 में हुए संसदीय चुनाव में मैत्रीपाला एक बार फिर विजयी रहे और अप्रैल 2010 में वे स्वास्थ्य मंत्री बनाये गये. नवंबर 2014 को मैत्रिपाला ने 2015 में होनेवाले राष्ट्रपति चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा की. इस चुनाव में मैत्रिपाला 51.28 प्रतिशत मतों के साथ विजयी रहे. 9 जनवरी, 2015 को वे श्रीलंका के राष्ट्रपति नियुक्त हुए.
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